Anti sikh riots: चंडीगढ़ . साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या एवं उसके बाद देशभर में हुए दंगों के गुनाहगार कौन हैं, यह अब तक साफ नहीं हो पाया है। बेशक, इंदिरा गांधी के हत्यारों को सजा मिल चुकी है, लेकिन उन निर्दोष सिखों के परिवारों को न्याय कब मिलेगा जोकि इन दुर्दांत दंगों में मौत के घाट उतार दिए गए। तब से सरकारें आई हैं, गई हैं, नेता बदलते रहे हैं। खुद कांग्रेस ने अनेक वर्षों तक राज किया है, राज्यों में उसकी सरकारें रही हैं, हैं और आगे भी कायम हो रही हैं। लेकिन इस दौरान यह राज कभी नहीं खुल पाया कि आखिर 84 के दंगों के गुनाहगार कौन हैं। क्या उन्हें नाजमद कर उनको सजा नहीं मिलनी चाहिए।
दिल्ली में सिख विरोधी दंगों में एक नाम हमेशा सुर्खियों में रहा है, वह नाम जगदीश टाइटलर का है। अपनी जवानी के दिनों में कांग्रेस और इंदिरा गांधी के विश्वस्त नेताओं में शुमार रहे जगदीश टाइटलर दंगों में सिखों की हत्या का आरोप झेल रहे हैं। अब उन्हें जमानत मिल चुकी है, बरसों तक जेल की सलाखों के पीछे रहे टाइटलर दंगाइयों का वह चेहरा रहे हैं, जिसके बारे में सिख दंगा पीडि़त चीख-चीख कर गवाही देते आए हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। क्या यह भारत की न्यायपालिका का सबसे संवेदनहीन पक्ष नहीं है कि यह मालूम होते हुए कि किसी के उकसावे पर ही दंगाइयों ने गुरुघरों को फूंक डाला था, सिख लोगों की हत्याएं की थी, उनके घरों, प्रतिष्ठानों को जला दिया गया था, दोषियों को कोई सजा नहीं मिल सकी है।
अब इस मामले में नया घटनाक्रम यह है कि सीबीआई ने जगदीश टाइटलर के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दाखिल किया है, इसमें उन पर गंभीरतम आरोप दोहराए गए हैं। इस दौरान एक गवाह ने कहा है कि 1 नवंबर 1984 को दिल्ली में गुरुद्वारा पुल बंगश के सामने एक सफेद अंबेसडर कार से टाइटलर ने बाहर आकर चिल्लाते हुए कहा था कि सिखों को मार डालो, उन्होंने हमारी मां (इंदिरा गांधी) को मार डाला है। मालूम हो, इंदिरा गांधी की हत्या के एक दिन बाद पुल बंगश के क्षेत्र में तीन लोगों की हत्या करके गुरुद्वारे में आग लगा दी गई थी। दरअसल, इस तरह के आरोप आरंभ से लगते आए हैं और इस मामले में आरोप पत्र बदलते रहे हैं। जांच एजेंसी ने आरोपियों की आवाज के नमूने लिए हैं, लेकिन उनका शुरू से यह कहना है कि वे निर्दोष हैं और उन्होंने कुछ नहीं किया है।
क्या यह न्यायप्रणाली का मजाक नहीं है कि हत्या करके या करवा कर भी कोई खुद को निर्दोष ठहराता है और धड़ल्ले से उन आरोपों को गलत ठहराता है जोकि पीडि़तों की पीढिय़ां लगाती आ रही हैं। यह पूरा मामला राजनीतिक संवेदनहीनता का भी परिचायक है। आजादी के समय भारत-पाक बंटवारे में लोगों ने जो दंश झेला था, वह 1984 के दंगों पर एकबार फिर उन्हें लहुलूहान कर गया था। 84 के दंगे यह बताने को काफी थे कि सिख समाज को कितना अकेला और विवश छोड़ दिया गया है। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को जायज ठहराया गया था, ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने पंजाब में आतंकवाद की कमर तोडऩे के लिए ऐसी ठोस कार्रवाई की, जोकि अगर अमल में नहीं लाई जाती तो आज के पंजाब की ऐसी सूरत नहीं होनी थी। ऐसे में श्रीमती इंदिरा गांधी ने जो किया, वह एक प्रशासक और राजनीतिक के रूप में उचित था, लेकिन उसके बाद उनके साथ जो किया गया, वह उचित कैसे ठहराया जा सकता है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार ऐसा कृत्य है, जिसे न चाहते हुए भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अंजाम देना पड़ा था। क्या एक देश में, एक राज्य में ऐसी ताकतों को सिर उठाने की इजाजत मिलनी चाहिए जोकि सर्व समाज के लिए समस्या बन रही हों। पंजाब में खालिस्तान की आग, दावानल बन चुकी थी और उसे बुझाने के लिए ऐसा कुछ किया जाना जरूरी हो गया था। यह भी तो एक सच है कि खालिस्तानी आतंकियों ने धर्म की आड़ ली, उन्होंने गुरुघर को अपना ठिकाना बनाया और उसके पीछे से वार किए। अगर उनमें इतना साहस था और वे देश की सरकार से टकराने का मूड रखते थे तो गुरुघरों से बाहर आकर अपने कृत्यों को अंजाम देते।
बावजूद इसके श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एक पार्टी विशेष के लोगों ने जिस प्रकार से समाज में आतंक को फैलाया और सिख समाज के लोगों पर रह-रहकर वार किए, उससे कानून की स्थिति की पोल खुल गई। किसी के बुरे कृत्यों के लिए पूरे समाज को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। वास्तव में सिख विरोधी दंगों के दोषियों को सजा मिलना जरूरी है, लेकिन यह कैसे होगा, यह सबसे बड़ा राज है। राजनीतिक दलों ने इस मामले को लेकर जिस प्रकार अपने फायदे की रोटियां सेकी हैं, वह भी दुर्भाग्यपूर्ण है। आखिर महात्मा गांधी का सत्य से सरोकार का वह मंत्र कहां गया, अपराधी अपराध करके भी निर्दोष है और निर्दोष अपराधी हो गया है।