Adampur by-election हरियाणा में एक बार चुनावी सियासत की बिसात बिछ चुकी है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद यह तीसरा अवसर होगा, जब उपचुनाव होने जा रहे हैं। पूर्व सीएम दिवंगत भजनलाल और उनके परिवार का पर्याय रहा आदमपुर हलका 3 नवंबर को यह तय करेगा कि वह किसके साथ है। इस हलके के समीकरण अब पूरी तरह बदल चुके हैं, एक समय कांग्रेस का गढ़ रहा हलका अब भाजपा नेता कुलदीप बिश्नोई के नाम से जाना जा रहा है। पिछले दिनों भाजपा में शामिल होकर कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस के नेतृत्व पर जो सवाल खड़े किए थे, अब उनका भी हिसाब होने जा रहा है। कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व का मानना और उसका दावा है कि हलके में कांग्रेस ही जीतेगी, क्योंकि जिस समय चौ. भजनलाल या उनके राजनीतिक वारिस कुलदीप बिश्नोई अगर यहां से जीत रहे थे तो वह कांग्रेस की वजह से ही था। हालांकि अलग पार्टी अलग पार्टी बनाकर भी कुलदीप बिश्नोई ही हलके से जीतते रहे हैं। लेकिन अब बदले हुए परिदृश्य में जहां कांग्रेस ज्यादा आक्रामक हो गई है, वहीं भाजपा-जजपा गठबंधन के लिए भी यह चुनाव अग्निपरीक्षा होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भजनलाल का गढ़ माने जाने वाले आदमपुर में 24 साल के भीतर यह चौथा उपचुनाव होगा, जबकि हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार के मौजूदा कार्यकाल में बरोदा व ऐलनाबाद के बाद तीसरा उपचुनाव होने जा रहा है। यह उपचुनाव मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई के लिए खास अहमियत रखता है। आदमपुर के चुनावी रण में इन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। प्रत्येक दल का अपना-अपना दावा है। कांग्रेस ने बरोदा उपचुनाव जीत कर हलके में अपने वर्चस्व का परचम फहराया था, हालांकि यह सीट पहले से कांग्रेस के ही पास थी। इसके बाद ऐलनाबाद में इनेलो विधायक अभय चौटाला के इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव हुआ लेकिन पुन: इनेलो ने ही सीट को कब्जा लिया। ऐलनाबाद को इनेलो की परंपरागत सीट माना जाता है।
अगर ऐलनाबाद में इनेलो ने पुन: जीत दर्ज की तो क्या यह माना जा सकता है कि आदमपुर में कुलदीप बिश्नोई फिर से जीत हासिल कर पाएंगे। हालांकि अभी तक इस सीट से किसी भी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। सवाल यह भी है कि क्या भाजपा फिर से कुलदीप बिश्नोई या फिर उनकी पत्नी या पुत्र को यहां से चुनाव लड़ाएगी। इसकी संभावनाएं बहुत कम हैं कि पार्टी किसी अन्य नेता को यहां प्रत्याशी बनाए। क्योंकि उसकी मंशा भी हरहाल में सीट को जीतना होगी, ऐसे में भजनलाल परिवार से इतर किसी को टिकट देना भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित होगा।
गौरतलब है कि आदमपुर में अभी तक 1996, 2008 और 2011 हुए तीन उपचुनाव में स्व. भजनलाल का परिवार ही जीतता आया है। वह भी सत्तारूढ़ दलों के खिलाफ। यह पहला मौका है, जब भजनलाल का परिवार सत्ता में भागीदार होने के रूप में उपचुनाव चुनाव लड़ेगा और उसका मुकाबला विपक्षी दलों के उम्मीदवारों से होगा। इस बार आदमपुर उपचुनाव की खास बात यह है कि आम आदमी पार्टी यहां अपना उम्मीदवार उतारने जा रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पिछले दिनों अपने हिसार दौरे के दौरान उपचुनाव की जमीन तैयार कर चुके हैं। करीब 18 साल से सत्ता से दूर चल रहे इनेलो को भी आदमपुर में कम नहीं आंका जा सकता।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए यह चुनाव अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। कांग्रेस हाईकमान भूपेंद्र हुड्डा को हरियाणा में खुलकर काम करने का अधिकार दे चुका है। प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान हुड्डा की पसंद के ही हैं। स्व. भजनलाल के स्थान पर भूपेंद्र हुड्डा को 2005 में मुख्यमंत्री बनाने के फैसले के खिलाफ कुलदीप बिश्नोई अपने पिता के साथ मिलकर अलग पार्टी हजकां बना चुके हैं। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया था, लेकिन इस बार हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष न बनाए जाने से नाराज होकर कुलदीप ने राहुल गांधी और भूपेंद्र हुड्डा के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया था। भूपेंद्र हुड्डा की कोशिश भी कुलदीप को किसी सूरत में आदमपुर से चुनाव न जीतने देने की होगी। कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पूर्व मंत्री प्रो. संपत सिंह, पूर्व मंत्री जयप्रकाश जेपी, पूर्व सांसद पंडित रामजी लाल के भतीजे चंद्रप्रकाश, पूर्व विधायक कुलबीर बेनीवाल और संपत सिंह के बेटे गौरव संपत सिंह के नाम चर्चा में हैं।
कांग्रेस की कोशिश कुलदीप बिश्नोई के बड़े भाई पूर्व उप मुख्यमंत्री चंद्रमोहन बिश्नोई को आदमपुर से चुनाव लड़वाने की है, लेकिन चंद्रमोहन इसके लिए तैयार होंगे, इसकी संभावना कम है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि चंद्रमोहन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा के खेमे से हैं और वे नहीं चाहेंगे कि हलके में हुड्डा समर्थित उम्मीदवार की जीत से सैलजा खेमा कमजोर हो। कांग्रेस के नेता बाहरी तौर पर बेशक एकजुट होने का दावा करें लेकिन यह निश्चित है कि अंदरखाने वे कभी भी एक-दूसरे के साथ नहीं आ सकते।
इस बार उपचुनाव इसलिए भी खास रहने वाला है, क्योंकि हरियाणा की मौजूदा राजनीति के सबसे बड़े क्षत्रप ओमप्रकाश चौटाला अपनी सजा काट कर पूरी तरह से आजाद हो चुके हैं। बरोदा उपचुनाव में वे पैरोल पर बाहर थे वहीं ऐलनाबाद उपचुनाव उनके बेटे अभय चौटाला ने अपने बूते लड़ा था। ओपी चौटाला इस समय इनेलो में फिर से जान फूंकने में लगे हैं। वे देश में तीसरे मोर्चे की कवायद में भी जुटे हैं। इसकी संभावनाएं बहुत कम हैं कि विपक्षी एक मंच पर आएंगे, क्योंकि कांग्रेस के बगैर यह मोर्चा सफल नहीं होने वाला।
आदमपुर उपचुनाव में यह तय है कि भाजपा-जजपा गठबंधन के अलावा हर कोई स्वतंत्र होकर ही चुनाव लड़ेगा। तब अगर एक उपचुनाव में विपक्षी एक मंच पर नहीं आ सकेंगे तो फिर विधानसभा और लोकसभा के आम चुनाव में कैसे एक हो सकते हैं? खैर, इस उपचुनाव के जरिए गठबंधन सरकार को अपनी लोकप्रियता को आंकने का मौका मिलेगा। इस चुनाव के परिणाम भविष्य की राजनीति के संकेत भी देंगे।