तेजस्वी भारत/इसहफ्ते न्यूज
ममता बनर्जी दो-टूक कह चुकी हैं कि भाजपा को केवल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ही टक्कर दे सकती है। कांग्रेस से कुछ नहीं होने वाला। वहीं, राहुल गांधी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ मोदी की सत्ता हिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो वर्ष पांच महीने बीत चुके हैं, हालांकि पूर्ण बहुमत से चुनी गई सरकार को कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है, लेकिन विपक्ष जिसके मंसूबे 2014 के चुनाव में धरे रह गए थे और वर्ष 2019 के चुनाव में भी जिसके हाथ कुछ नहीं आया था, अब वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। कृषि कानूनों और अन्य मुद्दों को लेकर लगातार अपनी तैयारियों को धार दे रहे विपक्ष को आगामी लोकसभा चुनाव से बहुत उम्मीदें हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि वर्ष 2024 के बाद कई नेता भारतीय राजनीति के फलक से ओझल हो जाएंगे। ऐसे में खुद के रिटायर होने से पहले उन्हें अपने राजनीतिक वारिसों को आगे बढ़ा कर जाना होगा। ऐसे में एक यक्ष प्रश्न जोकि बीते छह-सात वर्षों से भारतीय राजनीति को मथ रहा है, वह यह है कि आखिर विपक्ष का नेता कौन है? अगले लोकसभा चुनाव के समय भी अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूं ही सीना ताने खड़े रहे तो उन्हें टक्कर देने के लिए कौन आगे आएगा, राहुल गांधी, ममता बनर्जी या फिर अरविंद केजरीवाल।
तीसरा मोर्चा भी सवालों में
भारतीय राजनीति में विपक्ष के नेता की कुर्सी इससे पहले कभी खाली नजर नहीं आई थी। लेकिन मौजूदा समय में विपक्ष पूरी तरह बंटा हुआ दिख रहा है, वह न एकजुट होना चाहता है और न ही किसी एक सर्वमान्य नेता के नाम पर चलना चाहता है। हरियाणा से लेकर पश्चिम बंगाल तक तीसरे मोर्चे के गठन की योजना बनती है, लेकिन महज बातें ही होती हैं। 25 सितंबर को हरियाणा के जींद में इनेलो ने रैली की थी, जिसमें पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने विपक्ष के नेताओं को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन चौटाला के पारिवारिक दोस्त पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री एवं शिअद नेता प्रकाश सिंह बादल और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूख अब्दुल्ला और जनता दल यू के नेता के अलावा अन्य कोई नजर नहीं आया। क्या इन नेताओं के बूते देश में तीसरे मोर्चे का गठन हो सकता है? अपने बूते पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बहुमत लाने वाली ममता बनर्जी के बगैर क्या तीसरे मोर्चे का गठन संभव है? दरअसल, ममता दीदी कांग्रेस को पसंद नहीं है।
जुलाई में बंगाल से ममता बनर्जी दिल्ली आई थीं, उनके एजेंडे में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष से मुलाकात की भी चर्चा थी, कहा यह जा रहा था कि वे कांग्रेस के साथ मिलकर मोर्चा बनाने के मिशन पर हैं, लेकिन बाद में कांग्रेस ने इस योजना को खारिज कर दिया क्योंकि कांग्रेस को यह रास नहीं आएगा कि उसके इतर कोई और उसका नेतृत्व करे। हालांकि मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के नेताओं की यह मोर्चाबंदी उनके अस्तित्व की बात हो गई है। यही वजह है कि ममता बनर्जी कह रही हैं कि इस मामले में वे एकला चलो की नीति पर चलेंगी। वे भाजपा को चुनौती देने में खुद को सक्षम पाती हैं और यही वजह है कि वे तीसरे मोर्चे के नेतृत्व की दावेदार भी हैं।
इसलिए उन्होंने विपक्षी दलों को एक बैनर तले लाने के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है। इस बीच कांग्रेस को अकेले आगे बढ़ाने में जुटे राहुल गांधी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ महंगाई, जीएसटी, कृषि कानूनों की वापसी से लेकर निजीकरण के खिलाफ हर मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरते नजर आ रहे हैं। लखीमपुर खीरी मामले में भी कांग्रेस ही अब तक सबसे आक्रामक दिखी है। कांग्रेस और टीएमसी के अलावा भाजपा को टक्कर देने की क्षमता रखने वाली तीसरी पार्टी आप (आम आदमी पार्टी) है। दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल धीरे-धीरे राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बना रहे हैं। पार्टी अगले साल यूपी, उत्तराखंड, गोवा, गुजरात और पंजाब में अपने लिए अवसर देख रही है। इन सभी प्रदेशों में पार्टी को फायदा मिलने के आसार हैं।
ममता, केजरीवाल या फिर राहुल
ऐसे में राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल या कोई अन्य, कौन होगा जिसे विपक्ष का चेहरा कहा जाएगा। वैसे, क्या इन तीनों में से किसी एक का नेतृत्व दूसरा स्वीकार करेगा? यानी क्या ममता राहुल या राहुल ममता या ममता-राहुल केजरीवाल की कप्तानी में चुनावी मैच में उतरने के लिए तैयार होंगे? कोई और भी विपक्ष का नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा पाले हो, इसके बारे में कहा नहीं जा सकता है। हालांकि, यह बिल्कुल सच है कि इन तीनों में से किसी एक के मंच पर सभी विपक्षी दलों का आ जाना नामुमकिन है।
कांग्रेस ने टीएमसी हटाएगी भाजपा को
बंगाल में भाजपा को पटखनी देने के बाद ममता बनर्जी का मनोबल हाई है। वे तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाना चाहती हैं। भवानीपुर उपचुनाव में रिकॉर्डतोड़ मतों से जीत ने भी उन्हें आत्मविश्वास से भर दिया है। हाल में ममता ने पार्टी के मुखपत्र जागो बांग्ला में एक लेख लिखा था। इसमें उन्होंने साफ कहा है कि भाजपा को सत्ता से हटाने की कांग्रेस के बस की बात नहीं है। यह काम सिर्फ तृणमूल कांग्रेस कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने दो लोकसभा चुनाव में लोगों का विश्वास तोड़ा है। भाजपा के खिलाफ लड़ने में वह पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। अब लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्षी दलों का नेतृत्व ममता खुद करना चाहती हैं।
तो शिवसेना साथ हैं कांग्रेस के युवराज के
ममता बनर्जी बेशक विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने की चाह रखें, लेकिन हालात कुछ और भी हो सकते हैं। राजनीति में हवा कब करवट ले जाए, कोई नहीं जान पाता। महाराष्ट्र में जिस कांग्रेस से शिवसेना हमेशा दूरी बनाकर चलती आई, सरकार बनाने में उसी से मदद ले ली। अब उसी मदद के बदले कुछ तो देना ही होगा। यही वजह है कि शिवसेना ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के लिए अपने दिल के दरवाजे खोले हुए हैं। शिवसेना को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार में चाहे गठबंधन का नेतृत्व नजर न आए लेकिन राहुल गांधी पार्टी की पसंद हैं। अभी हाल ही में पार्टी के मुखपत्र सामना में अपने साप्ताहिक कॉलम में शिवसेना नेता संजय राउत ने टीएमसी और आप को खेल बिगाड़ू करार दिया है। राउत ने विपक्ष के नेतृत्व के मुद्दे पर खींचतान के बीच राहुल गांधी को ही इसके लिए एकमात्र विकल्प बताया। राउत ने संकेत दिया कि अगर टीएमसी और आप जैसे दल कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा नहीं बने तो इसका फायदा भाजपा को होगा। यानी वे चाहते हैं कि विपक्ष का मोर्चा बने लेकिन कांग्रेस उसका नेतृत्व करे।