इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़
कांग्रेस आलाकमान के लिए पंजाब सिरदर्दी बन चुका है। पार्टी के अंदर अनुशासन नहीं रहा है और स्थिति ऐसी हो गई है कि अब तो अली बाबा चालीस चोर की संज्ञा देकर दूसरे धड़े के नेताओं को अपमानित किया जा रहा है। पंजाब में कांग्रेस आलाकमान की ओर से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मर्जी के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू को प्रधान बनाने से पार्टी में जिस शांतिकाल की उम्मीद की जा रही थी, वह बेमानी साबित हो रही है। सिद्धू को महज प्रधान बनना नाकाफी लग रहा है और उनकी महत्वाकांक्षा अब और बड़ा हासिल करने की है।
पंजाब कांग्रेस इस समय दो गुटों में बंटी साफ नजर आ रही है, रात-दिन गुप्त बैठकों के दौर जारी हैं और शक्ति प्रदर्शन किए जा रहे हैं। कुछ विधायक सुबह सिद्धू के साथ खड़े नजर आते हैं तो रात होते-होते वे कैप्टन के पाले में दिखने लगते हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह वे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने मृतप्राय: हो चुकी कांग्रेस को पंजाब में जीवित करके सत्ता हासिल की थी। अब अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में उन्हें हटाने के लिए ही गुटबाजी चल रही है। हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने कैप्टन को हटाने की मांग को खारिज कर दिया है, और उन्हें अपना काम करते रहने की हिदायत दी है। बावजूद इसके न प्रदेश प्रधान सिद्धू को इससे कोई असर पड़ रहा है और न ही उनके समर्थकों को।
पंजाब कांग्रेस की सियासत में आपातकाल
सिद्धू ने प्रधान पद हासिल करके अपना मनचाहा पा लिया था, इसके बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि वे पार्टी ही संभालेंगे और सरकार कैप्टन को चलाने देंगे, लेकिन हकीकत कुछ और ही बन गई है। यह विचित्र है कि सिद्धू के सलाहकार ऐसे बयान दे रहे हैं, जोकि देश विरोधी हैं। खुद कांग्रेस पार्टी ऐसे बयानों से इत्तेफाक नहीं रख रही। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने तो कह भी दिया है कि ऐसे सलाहकारों को कांग्रेस तो क्या देश में भी रहने का हक नहीं है। जाहिर है, ऐसे बयान नहीं आने चाहिए जिनसे देश की एकता, अखंडता को नुकसान पहुंचता हो।
कश्मीर को भारत का अंग न मानने वाले सिद्धू के सलाहकारों के बयान से पहले ही कांग्रेस हिली हुई है, वहीं अब उन्हीं सलाहकारों की ओर से ओर नए बयानी बम फोड़े जा रहे हैं। ऐसा तब है, जब कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कह रहे हैं कि सिद्धू के सलाहकारों से कांग्रेस पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। ये उनके निजी बयान हैं और अब तो प्रभारी हरीश रावत ने सिद्धू को कहा है कि वे अपने विवादित सलाहकारों को बर्खास्त करें या फिर उन पर पार्टी कार्रवाई करेगी।
पहले तो सिद्धू को चाहिए था कि वे खुद अपने सलाहकारों की बोलती बंद करते और उन्हें पंजाब को लेकर ही सीमित रहने की नसीहत देते। पार्टी अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो रही है तो उसे जनहित के मुद्दों से ही सरोकार रखना चाहिए। प्रदेश की जनता और देश यह बखूबी देख रहा है कि पंजाब में आखिर चल क्या रहा है। सिद्धू की कार्यप्रणाली और उनके सलाहकारों के बयानों से यह साबित हो रहा है, जैसे वे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मौजूदगी को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। हालांकि आलाकमान ने अगर दोनों नेताओं को उनकी भूमिकाएं सौंपी हैं तो फिर उन्हें उन तक सीमित रहकर ही काम करना चाहिए।
गौरतलब है कि प्रधान सिद्धू के एक सलाहकार मलविंदर सिंह माली ने तो सोशल मीडिया पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लेकर एक और विवादित पोस्ट शेयर किया है। इस पोस्ट में इंदिरा गांधी का स्केच बनाया गया है। इसमें वे (इंदिरा गांधी) मानव खोपड़ी के ढेर के पास खड़ी हैं। और तो और उनके एक हाथ में बंदूक है और बंदूक की नली पर भी एक खोपड़ी लटकी है। आखिर इस प्रकार की पोस्ट क्या साबित कर रही हैं, इनको बनाने और शेयर करने का औचित्य क्या है? क्या सिद्धू और उनके सलाहकार कांग्रेस से इतर किसी कांग्रेस को बनाने की तैयारी में है।
अगर ऐसा ही था तो फिर सिद्धू ने पंजाब से लेकर दिल्ली तक आलाकमान की परिक्रमा के लिए दौड़ क्यों लगाई। इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के जरिए पंजाब में खालिस्तानी आतंकियों का सफाया करने का बीड़ा उठाया था और इसमें वे सफल भी हुईं। हालांकि फिर इसकी उन्होंने अपनी जान देकर कीमत चुकाई। अगर पंजाब में खालिस्तानी आतंकियों का सफाया नहीं होता तो क्या आज पंजाब ऐसा ही होता। जाहिर है, कांग्रेस को प्रदेश प्रधान सिद्धू और उनके सलाहकारों से इस संबंध में जवाब मांगना ही चाहिए कि आखिर इस तरह की हरकत का औचित्य क्या है। पंजाब ने लंबे समय तक अशांति झेली है, यह प्रदेश किसी एक पार्टी की बपौती नहीं है, ऐसे बयान और ऐसी हरकतें समाज में अशांति पैदा करती हैं।
कांग्रेस नेताओं को चाहिए कि वे प्रदेश में बने इस माहौल को खराब होने से बचाएं। प्रदेश कांग्रेस में बगावत का आधार इस बात को बनाया जा रहा है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर विधायकों की सुनवाई नहीं कर रहे। अगर ऐसी बात है तो कैप्टन को इस पर ध्यान देना चाहिए, सार्वजनिक जीवन में किसी मुख्यमंत्री के घर के दरवाजे सभी के लिए खुले होने चाहिए। अगर विधायक ऐसी शिकायत कर रहे हैं तो फिर आम जनता क्या आभास कर रही होगी। अब बीते दिनों प्रदेश प्रधान ने जनसमस्याओं के निवारण के लिए कांग्रेस कार्यालय में मंत्रियों के बैठने का रोस्टर बनाया था। इस तरह के कदम उस समय उठ रहे हैं, जब चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है, लेकिन विडम्बना यह है कि पार्टी की छवि को दुरुस्त करने की कवायद के साथ ही आपसी फूट भी चरम पर पहुंच गई है।
पंजाब की सियासत में यह नई बात नहीं है, लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर पार्टी और उसका प्रधान एवं मुख्यमंत्री अगर इसी प्रकार संघर्ष की स्थिति में रहे तो प्रदेश का विकास कब और कौन करेगा। आखिर कांग्रेस की आंतरिक कलह से जनता क्यों कोई लेना-देना रखे। जनता सुविधाएं चाहती है, जीवन स्तर ऊपर उठे यह उसकी तमन्ना है। पंजाब के संबंध में तमाम राजनीतिक दल बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश में विकास अवरूद्ध है और जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। अगले चुनाव में जनता को सोच-समझ कर फैसला लेना होगा।