राष्ट्रीय

सपा को किसान आंदोलन से फायदे की उम्मीद, गैर यादव, पिछड़े-अति पिछड़े भी साथ लाएंगे अखिलेश

08 सितंबर, 2021 12:48 AM
अखिलेश यादव ने इस बार ऐलान कर दिया है कि वे बड़े दलों से कोई गठबंधन नहीं करेंगे। Photo internet media

इसहफ्ते न्यूज/ उत्तर प्रदेश

 अखिलेश को अहसास है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ यादव और मुसलमान वोट बैंक के जरिए सत्ता हासिल नहीं की जा सकती। लिहाजा वे गैर यादव पिछड़ों और अति पिछड़ों को साथ लेने की कवायद में जुटे हैं। 

उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से जैसा माहौल बनने लगा है, वह काफी किंतु-परंतु से अटा हुआ है। विपक्षी राजनीतिक दलों को जब से टीवी न्यूज चैनलों के सर्वे, जिसमें भाजपा को फिर से जीतते दिखाया गया है, के सामने आने के बाद बेचैनी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने जहां ब्राह्मणवाद का राग पुरजोर आवाज में अलाप दिया है, वहीं समाजवादी पार्टी को भी मुस्लिम याद हो आए हैं। ऐसे में पूरे देश की निगाहें उत्तर प्रदेश पर टिक गई हैं।

 

  • भाजपा उभरी तो बसपा हुई कमजोर
    उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जोड़-घटा को देखें तो भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के उभार के बाद बसपा की ताकत लगातार घटी है।
  •  लोकसभा के 2014 के चुनाव में तो पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था। हालांकि मोदी की आंधी में भी समाजवादी पार्टी ने पांच सीटें जीत ली थी। विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा की आंधी ने विरोधियों के पांव और बुरी तरह उखाड़ दिए थे।
  • नतीजतन 2012 में 224 सीटें जीतकर सत्ता पाने वाली सपा 2017 में महज 47 सीटों पर सिमट गई थी। बसपा को तो 19 और कांगे्रस को अपना दल की सात सीटों पर सफलता मिल पाई थी।

 

सपा रही आक्रामक
बहरहाल, अगले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा के बाद सबसे ज्यादा आक्रामक भूमिका में सपा ही नजर आ रही है। अखिलेश यादव ने इस बार ऐलान कर दिया है कि वे बड़े दलों से कोई गठबंधन नहीं करेंगे। विधानसभा के पिछले चुनाव में उन्होंने 403 में से 100 सीटें गठबंधन कर कांग्रेस को दी थी। पर उसके महज 7 उम्मीदवार ही जीत पाए। लोकसभा चुनाव में उन्होंने बसपा के साथ बराबरी का गठबंधन किया था। उसका फायदा बसपा को हुआ।

अखिलेश ने निभाई मजबूत विपक्ष की भूमिका
बसपा का दलित वोट बैंक सपा के हिस्से वाली सीटों पर हिंदू-मुसलमान के जाल में फंसने से बच नहीं पाया। बसपा को दस सीटों पर सफलता मिली तो सपा पिछले पांच के आंकड़े से आगे नहीं बढ़ पाई। अखिलेश यादव ने आक्रामक भले न सही पर विपक्ष की सक्रिय भूमिका लगातार निभाई है। इसके उलट मायावती की कोरोना काल में भूमिका कहीं नहीं दिखी। अप्रैल-मई में हुए पंचायत चुनाव के नतीजों ने भी अखिलेश यादव का हौसला बढ़ाया। यह बात अलग है कि मतदाताओं ने जिन्हें सपा, कांग्रेस और बसपा के उम्मीदवार के नाते जिताया था, उन्हें प्रभावित कर जिला पंचायत अध्यक्ष परोक्ष चुनाव से भाजपा ने जीत लिए।

छोटे दलों से तालमेल संभव
अखिलेश यादव इस बार छोटे दलों के साथ तालमेल की रणनीति पर काम कर रहे हैं। सपा के महासचिव राजेंद्र चौधरी के मुताबिक रालोद और महान दल से उनका गठबंधन तय है। किसानों के आंदोलन से भी सपा को सियासी लाभ की उम्मीद है। अखिलेश को अहसास है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ यादव और मुसलमान वोट बैंक के जरिए सत्ता हासिल नहीं की जा सकती। लिहाजा वे गैर यादव पिछड़ों और अति पिछड़ों को साथ लेने की कवायद में जुटे हैं। बसपा और कांग्रेस ही नहीं भाजपा के भी अनेक असंतुष्ट नेता सपा में शामिल हुए हैं।

इसलिए बसपा चली ब्राह्मणों की राह
सबसे ज्यादा निराशा कांग्रेस और बसपा में है। अमेठी में राहुल गांधी की हार के बाद से उत्तर प्रदेश में कांगे्रस और कमजोर हुई है। बसपा ने अब मुसलमानों का मोह छोड़ 2007 की तरह ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने की रणनीति बनाई है। ब्राह्मण वोट बैंक के लिए सपा भी अपने ब्राह्मण नेताओं को आगे कर परशुराम सम्मेलन से लेकर जनेश्वर मिश्रा की जयंती और साइकिल यात्रा जैसे आयोजन कर चुकी है। अखिलेश यादव इस बार बसपा के प्रति भी नरमी नहीं दिखा रहे हैं। वे कई मौकों पर बसपा की यह कहकर आलोचना भी कर चुके हैं कि सत्ताधारी भाजपा का विरोध करने की जगह बसपा, कांगे्रस और सपा को ही निशाना बना रही है।

Have something to say? Post your comment

और राष्ट्रीय खबरें

कांग्रेस को इस समय खुद को 'पीजीआई' पहुंचने से रोकने की जरूरत है, 'घर' पर ही चिकित्सा कर ले गनीमत होगी

कांग्रेस को इस समय खुद को 'पीजीआई' पहुंचने से रोकने की जरूरत है, 'घर' पर ही चिकित्सा कर ले गनीमत होगी

आखिर सिटी ब्युटीफुल चंडीगढ़ में अगले पांच साल बाद भी कोई मौजूदा मुद्दों पर बहस करना पसंद करेगा?

आखिर सिटी ब्युटीफुल चंडीगढ़ में अगले पांच साल बाद भी कोई मौजूदा मुद्दों पर बहस करना पसंद करेगा?

हरियाणा में कांग्रेस अगर सरकार नहीं बनाना चाहती है तो उसने प्याले में तूफान क्यों पैदा किया?

हरियाणा में कांग्रेस अगर सरकार नहीं बनाना चाहती है तो उसने प्याले में तूफान क्यों पैदा किया?

हरियाणा में 3 निर्दलीय विधायकों के पाला बदलने से कांग्रेस को सच में मिलेगा फायदा ?

हरियाणा में 3 निर्दलीय विधायकों के पाला बदलने से कांग्रेस को सच में मिलेगा फायदा ?

इनेलो और जजपा अगर एक हो जाएं तो हरियाणा की सियासत में आ सकता है बड़ा बदलाव !

इनेलो और जजपा अगर एक हो जाएं तो हरियाणा की सियासत में आ सकता है बड़ा बदलाव !

बीरेंद्र सिंह परिवार के राजनीतिक भविष्य के लिए कांग्रेस में गए हैं, समय बताएगा कि यह कवायद क्या गुल खिलाती है

बीरेंद्र सिंह परिवार के राजनीतिक भविष्य के लिए कांग्रेस में गए हैं, समय बताएगा कि यह कवायद क्या गुल खिलाती है

7 साल में 4 बार अरुणाचल प्रदेश में जगहों के नाम बदलकर चीन ने आखिर क्या हासिल कर लिया ?

7 साल में 4 बार अरुणाचल प्रदेश में जगहों के नाम बदलकर चीन ने आखिर क्या हासिल कर लिया ?

लोकप्रिय और 'इम्पोर्ट' किए चेहरों के बूते 400 पार सीटों का लक्ष्य हासिल कर पाएगी भाजपा

लोकप्रिय और 'इम्पोर्ट' किए चेहरों के बूते 400 पार सीटों का लक्ष्य हासिल कर पाएगी भाजपा

पंजाब के प्रदर्शनकारी किसान क्या सच में इस मसले के समाधान को राजी हैं ?

पंजाब के प्रदर्शनकारी किसान क्या सच में इस मसले के समाधान को राजी हैं ?

नववर्ष के लिए हमारे संकल्प और लक्ष्य निर्धारित हों और हम उनको हासिल करने के लिए आगे बढ़ें

नववर्ष के लिए हमारे संकल्प और लक्ष्य निर्धारित हों और हम उनको हासिल करने के लिए आगे बढ़ें