इसहफ्ते न्यूज/एजेंसी
ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन के बाद अब पैरालंपिक में भी भारत ने ऐतिहासिक प्रदर्शन कर दुनिया को चौंका दिया है। खुद भारत में लोगों को इतने पदकों की उम्मीद न थी। गली-गली में अब इसकी चर्चा हो रही है कि आज तक हुए पैरालंपिक खेलों में देश को कुल 12 पदक हासिल हुए थे, लेकिन इस बार टोक्यो में आयोजित पैरालंपिक में देश के युवा 19 पदक लाने में कामयाब रहे हैं।
ओलंपिक को याद रखने की इस बार भारत के पास बहुत शानदार वजह है। वैसे तो हर ओलंपिक खास होता है, लेकिन इस बार टोक्यो ओलंपिक में जो घटा है, वह इससे पहले नहीं हुआ है। ओलंपिक हो या फिर पैरालंपिक भारत के युवा खिलाडिय़ों का प्रदर्शन इतना शानदार रहा है कि उसका प्रशस्ति गान चहुं दिशाओं में गूंजना चाहिए। दरअसल, यह खेल के क्षेत्र में भारत की उस धमक का आगाज है, जोकि अभी और रंग दिखाएगी। गांव-देहात से उठकर शहरों में कोचिंग लेकर टोक्यो में पहुंचकर भारत और अपने राज्यों का सम्मान बढ़ाने वाले युवाओं की यह कहानी प्रत्येक भारतीय को गौरवान्वित करती है और हमें इसका अहसास कराती है कि अब खेलों में ओलंपिक पदक का भारत का सूखा खत्म हो चुका है।
दरअसल, ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन के बाद अब पैरालंपिक में भी भारत ने ऐतिहासिक प्रदर्शन कर दुनिया को चौंका दिया है। खुद भारत में लोगों को इतने पदकों की उम्मीद न थी। गली-गली में अब इसकी चर्चा हो रही है कि आज तक हुए पैरालंपिक खेलों में देश को कुल 12 पदक हासिल हुए थे, लेकिन इस बार टोक्यो में आयोजित पैरालंपिक में देश के युवा 19 पदक लाने में कामयाब रहे हैं। इसके पहले के पैरालंपिक के प्रति हर तरह से उदासीनता रहती थी, लेकिन इस बार इन खेलों के प्रति सरकार के जिन अधिकारियों ने उत्साह दिखाया है, वे वाकई बधाई के पात्र हैं।
भारत से अपेक्षाकृत एक बड़े दल को पैरालंपिक में भेजकर भरोसा जताया गया। नौ प्रकार के खेलों में भाग लेने के लिए हमारे 54 खिलाड़ी टोक्यो गए और 19 पदकों के साथ लौटे हैं, तो बेशक यह आनुपातिक रूप से भी बहुत बड़ी कामयाबी है। करीब दस खिलाड़ी तो पदक के करीब जाकर रह गए हैं, अगर कुछ और मेहनत की होती, तो भारत के आधे खिलाड़ी पदक जीतकर लौटने में कामयाब होते। पैरालंपिक की जीत इसलिए भी ज्यादा मायने रखती है कि हमारे देश में अनेक लोग आज भी दिव्यांगों को महत्व नहीं देते हैं। आज ऐसे लोग अपनी पिछड़ी सोच पर पुनर्विचार कर रहे होंगे।
दिव्यांग होना अभिशापित होना नहीं है। टोक्यो पैरालंपिक में दुनिया के दिव्यांग खिलाडिय़ों ने यह दिखाया है कि बेशक उनके शारीरिक अंग नहीं हैं, लेकिन उनके अंदर आत्मविश्वास और हौसला आसमान जैसा बड़ा है। अगर भारत के संदर्भ में बात करें तो देश के अनेक खिलाडिय़ों ने बेहद विषम हालात में खुद को खड़ा रखते हुए इन खेलों तक अपनी पहुंच बनाई है। सोचिए अगर उनका हौसला हार जाता तो वे क्या आज टोक्यो पैरालंपिक के हीरो बन पाते। जाहिर है, हौसला सबकुछ है, इसके जरिए ही कामयाबी के झंडे गाड़ जा सकते हैं। इन खिलाडिय़ों ने यह साबित कर दिया है कि अगर उन पर भरोसा किया जाए, तो भविष्य में और भी पदक हासिल होंगे और भारत अपने आज के प्रदर्शन से कई गुना बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। भारत के पास पांच स्वर्ण, आठ रजत और छह कांस्य पदक हैं और वह दुनिया में 24वें स्थान पर है। पिछली बार भारत को केवल चार पदक मिले थे।
इन खास खिलाडिय़ों ने कुछ ऐसी कामयाबी अपने नाम की हैं कि उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास यतिराज की कामयाबी तो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए भी खास है। यतिराज पहले आईएएस हैं, जिन्होंने पैरालंपिक में न केवल बैडमिंटन में भाग लिया, बल्कि रजत पदक भी जीता है। आज वह किसी नायक से कम नहीं हैं। उनकी यह कामयाबी युवाओं के लिए बहुत प्रेरणास्पद सिद्ध होगी। पहली बार सबके सामने यह स्पष्ट हो गया है कि इन खिलाडिय़ों को कतई कम नहीं आंकना चाहिए। टेबल टेनिस में रजत जीतकर भाविनाबेन पटेल ने भारत के लिए शानदार शुरुआत की थी। 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग स्टैंडिंग इवेंट में शूटर अवनि लेखरा ने स्वर्ण जीता।
उन्होंने 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन में भी कांस्य पदक जीता। इसके अलावा, सुमित अंतिल ने कई विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए, मनीष नरवाल और प्रमोद भगत ने भी शीर्ष स्थान हासिल किया। अंतिम दिन, कृष्णा नागर ने बैडमिंटन में स्वर्ण जीता। निषाद कुमार, देवेंद्र झाझरिया, सुंदर सिंह गुर्जर भी कामयाब रहे। खास यह कि देवेंद्र ने अपने पैरालंपिक करियर के दो स्वर्णों में एक रजत पदक जोड़ लिया है। योगेश कथुनिया, सिंहराज अधाना, मरियप्पन थंगावेलु, शरद कुमार इत्यादि अनेक नाम हैं, जो भारत को पैरालंपिक में आगे की राह दिखाएंगे। वास्तव में, अब लगने लगा है कि खेलों के प्रति हमारा व्यवहार बदल गया है। सरकारों को इन विशेष खिलाडिय़ों के जीवन को हर प्रकार से सुरक्षित, संरक्षित करना चाहिए।
इस बार अनेक खिलाड़ी हरियाणा से हैं और प्रदेश सरकार ने खिलाडिय़ों के सम्मान में जो पलक पावड़े बिछाए हैं, वह सरकार की खेल और खिलाड़ियोंं को प्रोत्साहित करने की मंशा को बखूबी जाहिर करता है। हरियाणा सरकार ओलंपिक पदक विजेताओं को जितनी राशि ईनाम के तौर पर प्रदान की है, वह काबिलेतारीफ की बात है। हालांकि महज ईनाम की राशि पर खर्च काफी नहीं है, सरकार को बेहद जमीनी स्तर पर खेल की सुविधाओं को बढ़ावा देना होगा। यह भी हो सकता है कि बचपन से ही खिलाडिय़ों को तैयार किया जाए, यानी उनकी शिक्षा खेल ही बन जाए। जैसा चीन अपने यहां करता है, इसके अलावा अन्य देश भी ऐसा कर रहे हैं। जाहिर है, खेल जीवन को बनाते हैं और उनसे जुड़ा व्यक्ति हमेशा समाज को सकारात्मकता देता है, तब एक सफल खिलाड़ी न केवल खेल को अपना सर्वश्रेष्ठ देगा वहीं समाज को भी सही दिशा प्रदान करेगा।